Wednesday, March 2, 2011

अवधूत बाबा समूह रत्न रामजी की विशिष्ट और दुर्लभ दीक्षा .

अघोर पथ के पथिको को यह भेद ज्ञात है कि, आध्यात्म जगत के हर पथ हर सम्प्रदाय हर धर्म में अवस्था और पद का बड़ा महत्व होता है. साधक अथवा संत अपनी अवस्था को खुद प्रगट करते हैं, कुछ जगह दुसरे संतो ने जागृत लोगो ने दुसरे कि अवस्था की घोषणा की है. गौतम बुद्ध ने अपने बुद्धत्व की घोषणा खुद की, तब लोगो  को   उनकी अवस्था का  पता चला.  ज्ञान मार्ग   के पथिको को मालूम है कि, पहला लक्ष्य या अवस्था शिवत्व है और उसके बाद बुद्धत्व. इसी प्रकार अघोर पथ के साधक जानते हैं कि अवधूत मत में भी चार अवस्थाएं हैं,  पहली अवस्था अघोरी दूसरी औघड़ तीसरी अवधूत और चतुर्थ अघोरेश्वर. इस अवस्था का पता साधक संत स्वयं दे देते हैं. अघोर पथ के साधक जिस अवस्था में होते हैं,  उस   पद या अवस्था के उपनाम का उपयोग करते हैं. साधक किस अवस्था पर स्थित है इसके कुछ लक्षण और कुछ क्रियाये भी हैं, जिनसे उनकी अवस्था को जाना जा सकता है, परन्तु गोप्य होने के कारण इसे यहाँ प्रगट करना उचित नहीं है.
                                                       परम पूज्य अघोरेश्वर भगवान रामजी इस सदी के महान अघोर संत हुए हैं.  पूज्य अघोरेश्वर अपने आरभ के दिनों में अपने नाम के आगे औघड़ पद का उपयोग करते थे, पूज्य  महाप्रभु के जीवन चरित पर एक किताब भी प्रकाशित हुई थी जिसका शीर्षक
" औघड़ भगवान् राम ग्रन्थ" था. कुछ काल के बाद पूज्य महाप्रभु ने अपने नाम के आगे अवधूत पद का उपयोग करना आरम्भ किया. यह पद ही अघोर साधक या संत की अवस्था को दिखलाता है. दशनामी परंपरा के साधको में भी यह प्रचलित है. अंतर सिर्फ इतना है की अघोर संत अपने नाम के आगे पद लगाते हैं और दशनामी अपने नाम के बाद. शंकराचार्य द्वारा स्थापित दशनामी संन्यास परम्परा में दस पद या उपनाम का उपयोग होता है.

तीर्थाश्रम वनारण्य गिरि पर्वत सागरा:।
सरस्वती भारती च पुरी नामानि वै दश:॥

तीर्थ एवं आश्रम नागा संन्यासियों को शारदा (द्वारिका) मठ से संबन्धित किया। वन एवं अरण्यों को गोवर्धन (जगन्नाथ पुरी) मठ से जोड़ा जाता गया। गिरी, पर्वत तथा सागर नागा संन्यासियों के ज्योर्तिमठ से संबन्धित किया गया है। सरस्वती, भारती एवं पुरी नागा संन्यासियों को शारदा मठ से संबन्धित किया गया है।
            
                                            परम पूज्य अघोरेश्वर भगवान् रामजी ने अपनी शिष्य परम्परा में सभी साधको को औघड़ अथवा अवधूत अवस्था की स्थिति में ही दीक्षित किया. अपने नाम के आगे अघोरेश्वर का उपनाम उपयोग करने के बाद पूज्य महाप्रभुजी ने अपने सिर्फ एक शिष्य को मुडिया साधू के रूप में दीक्षित किया और वो शिष्य थे पूज्य अवधूत बाबा समूह रत्न राम जी, जिन्हें सब महुआ टोली वाले औघड़ बाबा के नाम से जानते हैं. यह आश्चर्यजनक सत्य है की अघोरेश्वर की अवस्था में पूज्य महाप्रभु ने अपने एक ही शिष्य को अघोर संस्कार में दीक्षित किया और अपना अंतिम उत्तराधिकारी भी घोषित किया. इस सत्य के प्रकाश में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि, पूज्य अवधूत बाबा समूह रत्न रामजी अकेले ऐसे साधू हैं जिन्हें अघोरेश्वर का बुद्ध का साधू शिष्य होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. संन्यास दीक्षा संस्कार मूलतः रूपांतरण कि प्रक्रिया का सर्वोच्च सोपान है जिसमे गुरु शिष्य को उसी वक्त अपनी शक्तियां और सूक्तियां सौपते हैं. अघोरेश्वर पद पर विराजमान संत की  शक्तियों की कल्पना भी हमारे सोच के दायरे से बहुत ऊपर हैं.

                                                                    पूज्य अवधूत सम्मोह रत्न रामजी अकेले ऐसे मुडिया साधु हैं जिनका दीक्षा संस्कार, हवन पूजन, नामकरण और दीक्षा देने का अधिकार एक ही दिन प्राप्त हुआ. पूज्य बाबा का दीक्षा दिवस भी अतुलनीय है, पूज्य बाबा को पूज्य अघोरेश्वर ने बुद्ध पूर्णिमा के दिन दीक्षा दी थी. बुद्ध पूर्णिमा अथवा पूर्णिमा का बहुत महत्त्व है आध्यात्म जगत में. गौतम बुद्ध पूर्णिमा के दिन जन्मे पूर्णिमा के दिन बुद्धत्व को उपलब्ध हुए और पूर्णिमा के दिन ही निर्वाण को प्राप्त हुए. अगर इतिहास पर नज़र डाले तो पूर्णिमा के दिन ही सर्वाधिक लोगो को बुद्धत्व उपलब्ध हुआ. पूर्णिमा के चन्द्र से समुद्र में भी ज्वार भाटा उठने लगता है, पूर्णिमा के दिन मन शरीर भी सर्वाधिक प्रभावित होते हैं. पूज्य अघोरेश्वर इस सदी के जीवित बुद्ध थे, और पूज्य बाबा को सन्यास में दीक्षित करने का दिन अगर उन्होंने बुद्ध पूर्णिमा चुना तो यह एक सुखद आश्चर्य की बात है.

                                                                पूज्य अघोरेश्वर ने अपने सभी उत्तराधिकारी साधु शिष्यों का नामकरण दीक्षा के काफी समय बाद किया और दीक्षा देने का अधिकार तो बहुत बाद में प्रदान किया. पूज्य बाबा अकेले शिष्य हैं जिन्हें दीक्षा संस्कार, नामकरण और दीक्षा देने का अधिकार एक ही दिन पूज्य महाप्रभु ने प्रदान कर दिया. पूज्य बाबा का दीक्षा संस्कार सर्वाधिक समय में संपन्न हुआ, दोपहर तीन बजे आरम्भ होकर रात नौ बजे संस्कार संपन्न हुआ. इन्ही सब तथ्यों के प्रकाश में यह कहना उचित होगा की पूज्य बाबा समूह रत्न रामजी की दीक्षा अपने आप में  दुर्लभ थी.

" अघोरान्ना परो मंत्रः नास्ति तत्वं गुरो परम "

           
                                                 
                                                       
        

2 comments:

  1. छत्‍तीसगढ़ ब्‍लॉगर्स चौपाल में समूह के इस ब्‍लॉग का स्‍वागत है.

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  2. you have given the facts which itself tells that samuhratna babaji is the ultimate desciple of Aghoreswar .........................samvarti samuh is the fruit of his effort...............jai gurumaharaj ki jai

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