Wednesday, March 27, 2013

हम साधु पथ पर है।छमा करना हमारा धर्म है। किंतु एसा साधु भि ठीक नहि कि उसके साधुताई का कोई नाजायज फायदा उठा ले। बार बार गलतेयों का छमा अपराध कि श्रेणि में आता है।
दुचित्त में पडा हुवा व्यक्ति न घर का होता है,न घाट का होता है।उस दुचित में ही उसका सारा कुछ मारा जाता है। दो नाव कि सवारी के विसय में सभि जानते है,यहा तो नाजाने कितने नाव हैं भगवान को भि नहि पता है कि क्या होगा।
शासक शाश्वत नहीं हो सकतहै,चिर्‌‌‌-काल तक संत का गुण-धर्म ही शाश्वत है।