Monday, December 27, 2010

श्री समवर्ती समूह

श्री समवर्ती  समूह - पूज्य अवधूत बाबा समूह रत्न रामजी द्वारा बोया गया वो बीज है, जो अब एक वृक्ष का आकार ले चूका है. इस वृक्ष की छाया के निचे अघोर पथ के पथिक विश्राम पाते हैं, यह उनका कल्पवृक्ष बन कर उनकी सारी आकांक्षाओं की पूर्ती करता है. जो साधक, भक्त , प्रेमी, जिज्ञासु, जिस आशा के साथ इस वृक्ष का आश्रय लेता है, उसकी वो आशा पूरी होती है. आध्यात्म, सेवा, साधना एवं भक्ति का यह केंद्र , धीरे धीरे अघोर पथ के पथिको को प्रकाश दे रहा है. श्री समवर्ती समूह- इस नाम से ही इसके महत्त्व एवं अर्थ का भेद प्रगट हो जाता है. समवर्ती का अर्थ होता है, सबको समान समझ कर समान व्यवहार करने वाला, बिना किसी भेद के अभेद मूर्ति होता है. एक होता है,   समदर्शी जो सबको सामान दृष्टि से देखता है, परन्तु समवर्ती समदर्शी से आगे की स्थिति है, सबको समान रूप से देखना फिर भी संभव होता है परन्तु सबको समान समझना सबसे समान व्यवहार करना सरल प्रतीत नहीं होता है. पूज्य बाबा समदर्शिता के साथ साथ समवर्तिता  की मूर्ति हैं. एक समवर्ती स्वभाव के जागृत पुरुष से ही आप समूह की अपेक्षा कर सकते हैं, सामान्य व्यक्ति तो संगठन का निर्माण करते हैं, परन्तु एक समवर्ती ही समूह की कल्पना को साकार कर सकता है. समूह और संगठन में बहुत बड़ा अंतर होता है, बिलकुल उतना ही जितना एक सामान्य पुरुष और बुद्ध पुरुष में होता है. संगठन वो होता है, जिसमे पदाधिकारी होते हैं, चुनाव होता है, कोई ऊपर होता है कोई उसके नीचे, सब भिन्न भिन्न तरह के लोग , अपनी भिन्नता को बनाए रखते हुए साथ आते हैं. परन्तु समूह बनता है समान लोगो से, समूह का अर्थ होता है जहाँ अमीर गरीब, छोटे बड़े, ऊँचे निचे, सामान्य विशेष सब तरह के लोग आते हैं पर समूह में आते ही सब एक जैसे बन जाते हैं. समूह का पहला नियम ही यही है, पहली शर्त ही यही है, की समूह का हर सदस्य समान होना चाहिए. भिन्न भिन्न तरह के लोग आते हैं, एक समवर्ती पुरुष के आश्रय में और एक हो जाते हैं. यह बिलकुल इस तरह है, जैसे अलग अलग क्षेत्रो से निकली अलग अलग नदियाँ सागर में आकर सागर से एक रूप हो जाती है, उनका अपना कुछ विशेष गुण नहीं रह जाता सब समान हो जाती हैं. समूह भी ऐसे ही लोगो से बनता है, जो होते तो भिन्न हैं पर समवर्ती पुरुष के सानिध्य में रूपांतरित हो जाते हैं, अहंकार का लोप हो जाता है, छोटे बड़े कका भाव मिट जाता है, अमीर गरीब, उंच नीच की भावना विलीन हो जाती है. समूह में आकर  सब एक रूप हो जाते हैं, कोई छोटा नहीं कोई बड़ा नहीं. संगठन महत्वाकांक्षी लोगो से बनता है, राजनीति जिसका मुख्य अंग होता है. राजनीति का शासन  से कोई लेना देना नहीं, आप जहाँ हैं वहीँ राजनीति हो सकती है, बस आप भी एक राजनेता की तरह महत्वाकांक्षा पाल लीजिये, जहाँ चुनाव है वहां राजनीति है, प्रभावित करने के हथकंडे हैं,  संगठन आपकी महत्वाकांक्षा को पोषित करता है, जबकि समूह आपकी सारी महत्वाकांक्षा को शांत करके आपको स्वयं को पाने की और प्रेरित करता है. जब तक महत्वाकांक्षा रहेगी तब तक अहंकार रहेगा और जब तक अहम् है तब तक खुद को या अज्ञात को पाना मुश्किल है.संगठन शक्ति का प्रतीक होता है, परन्तु समूह शक्ति  सहित श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक  होता है. संगठन में शक्ति होती है, बिना किसी अंकुश के पर समूह में शक्ति भक्ति के साथ साथ चलती है. इसलिए निरंकुश होने की संभावना ख़त्म हो जाती है.  श्री समवर्ती  समूह-  समवर्ती समूह के पहले बाबा ने श्री लिखा , श्री अर्थात आपके जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ती. जब आप रोजी रोटी मकान पा लेते हैं तब आप आगे बढ़ सकते हैं अज्ञात की और, जब आप अपनी रोजी रोटी की चिंता में ही उलझे रहेंगे तो भगवान् का भजन करते वक्त भी मन में रोटी कपड़ा और मकान चलते रहेगा. कहते भी हैं " भूखे भजन ना होए गोपाला " भूखे व्यक्ति से अर्थात जब तक मन में इच्छाए बची हैं तब तक अज्ञात की और जाना कठिन है. इसलिए पहले श्री अर्थात जीवन के आवश्यकताओं की पूर्ती फिर समवर्ती अर्थात सबको समान रूप से ना सिर्फ देखना बल्कि समान समझना, समान व्यवहार करना और आखिरी में समूह याने साथ आ जाना एकत्रित हो जाना और एक साथ बढना. हम सब सबको समान समझे सबसे समान व्यवहार करे तभी बाबा की कल्पना को साकार कर सकेंगे. फिर कभी..........
अघोरान्ना परो मंत्रो नास्ति तत्वं गुरो: परम 

Wednesday, December 22, 2010

बाबा जी का सर्वप्रथम रायपुर आगमन

सन् 1994 मे सर्वप्रथम बाबा जी का रायपुर आगमन हुवा था उस समय हम लोगो का निवास रायपुर के शॅंकरनगर स्थित भारतीय स्टेट बैक अपार्टमेंट मे हुवा करता था मुझे आज भी अच्छे से याद है वह दिन जब मुझे पहली बार बाबा जी का दर्शन लाभ प्राप्त हुवा था .मेरी जानकारी मे ये था की कुनकुरी से नाना नानी आने वाले है सुबह से इंतजार करते शाम हो गयी थी करीब रात को 9 से 10 के बीच मे एक गाड़ी की आवाज़ सुनाई दी हम लोग सहपरिवार बाहर आए देखते है की एक मारुति वन रुकी है जिसमे बाबा जी बैठे है साथ मे मेरे नाना नानी और उनका परिवार भी है मेने जाकर नाना नानी को प्रणाम किया तभी पिताजी ने मुझे कहा की साथ मे जो है वे बाबा जी है हम लोग सहपरिवार बाबा जी का आशीर्वाद प्राप्त किया तत्पश्चात मैने बाबा जी को ध्यान से देखा बाबा जी सफेद कुर्ता एवं सफेद लूँगी पहेने हुवे थे चहरे से एक अनोखा तेज प्रकट हो रहा था जो की स्वाभविक रूप से आपको उनकी और खिच रहा था चहरे से आखो को दूसरी ओर करने का मन नही कर रहा था (देवेश पंडा)

Tuesday, November 30, 2010

पूज्य गुरुदेव के दर्शन कक्ष में स्थित आसन

अघोर पथ के पथिको को सदा से यह ज्ञात रहा है की गुरु के आसन और गुरु में कोई अंतर नहीं होता है. अघोर गुरु       की अनुपस्थिति  में उनके आसन को प्रणाम करके साधक अपना अभीष्ट  प्राप्त करते हैं. पूज्य बाबा के दर्शन कक्ष में स्थित  आसन को प्रणाम निवेदन करते बाबा के एक भक्त. पूज्य बाबा आश्रम में हो या प्रवास में हो, उनके भक्तो को उनकी सूक्ष्म उपस्थिति  सदैव उनके आसन के समीप होती है.
महुआ टोली वाले औघड़ बाबा
" करता है हर कर्म जो, रहता है निष्काम, आकाश सा निर्लेप है जो अवधूत है उसका नाम "
" अघोरेश्वर के सन्मुख प्रगटे , ओर पाया उनसे ज्ञान   , रत्न लगा निज का उन्हें ,  नाम दिया समूह रत्न राम "

Thursday, November 25, 2010

श्री समवर्ती समूह संस्थान देवस्थानम एवं श्री अघोरेश्वर भगवन राम गुरुकुल की स्थापना पूज्य अघोरेश्वर भगवान् रामजी के अंतिम मुडिया साधू शिष्य पूज्य अवधूत समूह रत्न रामजी द्वारा की गयी है. छत्तीसगढ़ का यह पूर्वी भाग आदिवासी बाहुल्य है, तथा औघड़ अघोरेश्वरो की साधना स्थली के रूप में विख्यात है. श्री राम वन गमन मार्ग तथा गौतम बुद्ध के सानिध्य का लाभ भी प्रदेश के इस भाग को प्राप्त हुआ है. पूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु के अनन्य भक्त जशपुर महाराज स्व. विजय भूषण सिंह जूदेव ने महाप्रभु से इस क्षेत्र को अपने सानिद्य से पावन करने का निवेदन किया था जिसे पूज्य श्री ने स्वीकार किया. पूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु ने यहाँ तीन आश्रमों का निर्माण किया जो सोग्ढ़ा , गम्हरिया तथा नारायणपुर में स्थित है. पूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु ने पूज्य अवधूत बाबा समूह रत्न रामजी ने पूज्य बाबाजी से कहा था, की यह क्षेत्र भारतवर्ष की प्राच्य संस्कृति एवं विज्ञान का केंद्र है. पूज्य श्री ने पूज्य बाबाजी को यह क्षेत्र कभी ना छोड़ने कहा. पूज्य बाबाजी ने अघोरेश्वर महाप्रभु की बातो को सहेजकर और अपनी अंतर्वाणी को आधार बनाकर , जशपुर जिले के कुनकुरी नगर से सात किलोमीटर बाहर , महुआ टोली नामक जगह पर अपना स्थान बनाया. पूज्य बाबाजी ने उस उजाड़ जगह पर स्थित एक बरगद के पेड़ के निचे अपनी कुटिया बनायी. उस स्थान के बारे में बाद में पता करने पर ज्ञात हुआ की बरगद के उस वृक्ष के निचे छोटे बच्चो को दफनाया जाता था. इस तरह पूज्य बाबा ने उस स्थान पर धुनी रमा कर उन बच्चो को मुक्ति प्रदान की. तत्पश्चात आश्रम ने अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक समिति का निर्माण किया जिसके संस्थापक अध्यक्ष  पूज्य बाबाजी हैं. श्री अघोरेश्वर भगवान राम गुरुकुल एवं श्री समवर्ती  समूह संस्थान देवस्थानम  एक साथ धार्मिक एवं सामाजिक जागृति का केंद्र है. एक ओर जहाँ धर्म आध्यात्म एवं प्राच्य विज्ञान पर कार्य होता है, वहीँ दूसरी ओर सामजिक बुराई के खिलाफ जागरूकता भी संस्था के कार्यक्षेत्र का अंग है. आश्रम पूर्णतः प्राकृतिक वातावरण में स्थित है, मंदिर , धुनी स्थान, प्रवचन हाल , गौशाला , शिव मंदिर, गणेश पीठ के दर्शन से जन साधारण अभिभूत हो जाते हैं.आश्रम में स्थित शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग पुरे विश्व में अनूठा है. यह छह कोण वाला शिवलिंग अपने आप में अद्वितीय है. आश्रम के बारे में विस्तृत जानकारी आपको मिलते रहेगी. आपके विचार एवं प्रश्न सदैव आमंत्रित हैं. 

                           पूज्य गुरुदेव अवधूत बाबा समूह रत्न रामजी

पूज्य बाबाजी

पूज्य बाबाजी


                                                                         पूज्य बाबाजी
 
आश्रम
माँ गुरु मंदिर
आश्रम बगिया
मुख्य द्वार
बाबा कीनाराम विग्रह स्थल
                                                                                आश्रम
बाबा कीनाराम विग्रह स्थल
शिव मंदिर
                                                                        शिव मंदिर
                                                                     गणेश पीठ
                                                                   पूज्य बाबा दर्शन स्थल
                                                              पूज्य बाबाजी का निवास
                                                                      संत निवास
                                                                   गणेश पीठ
                                                                      गणेश पीठ
                                                                      पूज्य बाबाजी का आसन
                                                                शिव मंदिर
                                                                            भण्डारा