Sunday, March 13, 2011

अवधूत बाबा समूह रत्न राम जी के कुछ चित्र

                                            पूज्य बाबा आश्रम की बगिया के एक फूल के बारे में बताते हुए.



                                               रायपुर स्थित आश्रम में पूज्य बाबाजी अपने शिष्यों राहुल शर्मा और देवेश पंडा के साथ 

फुर्सत के पल

अवधूत समूह रत्न राम लीला प्रसंग

प्रिय मित्रों
                   जीवन का सबसे मधुर क्षण वो होता है, जब कोई व्यक्ति आपके अभ्यंतर में दस्तक देता है, और द्वार खोलते ही आपके जीवन का हर कोना एक मधुर सुवास से भर जाता है. आपके जीवन के बुझे तारो में कोई संगीत की अग्नि प्रज्वलित हो जाती है. सदगुरु भी जब आपके अभ्यंतर पर दस्तक देते हैं तो जीवन ही नहीं जीवन के पहले और जीवन के बाद के क्षण भी अमृत से लबालब हो जाते हैं. वो एक अनजान हो या जाने पहचाने पर जब वो सामने आते हैं तो पहली बार आपकी भावनाए ह्रदय से नहीं आत्मा से उठती प्रतीत होती हैं. जब गुरु समक्ष होते हैं तो आप अपने साथ होने लगते हैं, आपका मन, आपकी इन्द्रियाँ, आपका ह्रदय, आपका मस्तिष्क और आपकी आत्मा एक ही बिंदु पर आकर ठहर जाते हैं.  एक ऐसा पल जब आप पहली बार अपने आप में होते हैं. ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ जब मैंने पहली बार पूज्य बाबा के दर्शन किये.

                     हम उस वक्त एस बी आई अपार्टमेन्ट, रायपुर में रहते थे. पिताजी बैंक अधिकारी थे, पास ही श्री देवेश पंडा का घर था जो मेरे मित्र हैं. उन दिनों आध्यात्म के प्रति एक अजीब सी प्यास थी, साधू संतो के दर्शन करना दैकिन जीवन चर्या हुआ करती थी. देवेश ने मुझे बताया की हमारे  घर पर औघड़ बाबा आये हैं. मैंने कहा यार मुझे भी मिलवा दे आज तक अघोरी औघड़ लोगो का नाम ही सुना है कभी देखा नहीं. मैंने सोचा जटा जूट धारी भस्म रुद्राक्ष हड्डी कपाल यही सब उपयोग करने वाले किसी भीमकाय व्यक्ति से सामना होने जा रहा है. जब मैं उसके घर पहुंचा तो देखा एक सौम्य मूर्ति मेरे सामने विराजमान है. सफ़ेद लुंगी और टी शर्ट पहने एक युवा सज्जन बैठे हैं, गज़ब का आकर्षण था उस चेहरे और आँखों में, कान मानो गणेशजी के कान हो, सर इतना बड़ा की आश्चर्य हुआ. मैंने नमस्कार किया, माथा टेक कर प्रणाम या पैर छूने का उपक्रम नहीं किया. उन्होंने पास बैठाया और घर परिवार पढ़ाई आदि की बातें पूछी. ना आध्यात्म का मैंने कोई सवाल किया और ना उन्होंने कोई उपदेश दिया. बस यही थी मेरी छोटी सी मुलाक़ात. पर कबीर कहते हैं ना, शब्द के बाण लगाए रे फकीरवा. उनके शब्दों में उनकी आँखों में इतनी गहराई दिखी की मैंने स्वयं के अस्तित्व को उसमे डूबते देखा. बस ह्रदय ने कह दिया यही हैं जिसकी बरसो से तलाश थी. आश्चर्यो का आश्चर्य, मेरे जैसा इंसान जो बिना प्रश्न और तर्क किये किसी को जाने नहीं देता था वो एक व्यक्ति के मौन में डूब गया. ऐसा तीर लगा की बस चारो खाने चित्त. उन दिनों मैं तंत्र मन्त्र के क्षेत्र में बहुत सारे प्रयोग किया करता था, जाने कितनो साधू संतो महंतो के पास जाता था, कितने तांत्रिको मांत्रिको के साथ उठना बैठना होता था, कुल मिलाकर मैं खुद को छोटी मोटी हस्ती नहीं समझता था, पर पूज्य बाबा से मिलने के बाद लगा की अबे कहाँ तालाब की ख़ाक छान रहा है, यह तो पूरा समंदर हैं.  गजब बात है की बिना आध्यात्म की बाते किये कोई आपके आध्यात्म मार्ग  का पथ प्रदर्शक लगने लगा. यही है एक सदगुरु की पहचान. मौन में सारी बाते हो जाती है. बरसो की प्यास मिट जाती है और ह्रदय में आनंद का झरना फूट पड़ता है.

अघोरान्ना परो मन्त्रः नास्ति तत्वं गुरो परम


        

Wednesday, March 9, 2011

औघड़ी चिकित्सा पूज्य बाबा का आशीर्वाद

पूज्य औघड़ बाबा के सानिध्य में बहुत से लोगो का कल्याण होता है. आशीर्वाद देने के तरीके भी अलग होते हैं, किसी को प्रसाद किसी को भस्मी किसी को बोलकर तो किसी को कोई जड़ी बूटी बताकर. पूज्य बाबा बहुधा लोगो को बीमारियों के लिए औषधि बताते है, जो आसपास उगने वाली होती है. ऐसी वनस्पतियाँ जो हमारे आस पास होती हैं, पर जिनके गुणों के बारे में हमें पता नहीं होता है.
                एक दिन पूज्य बाबाजी के साथ मैं और मेरे गुरु भाई श्री राहुल शर्मा टहल रहे थे, बाबा अपने आशिवाच्नो से हमें तृप्त कर रहे थे, तभी पड़ोस में रहने वाली एक बहन अपनी एक ५ वर्ष की बच्ची को लेकर निकली, हमने देखा वो बच्ची मानसिक रूप से विकलांग थी. पूज्य बाबा यह देख कर द्रवित हो गए और कहा कि हम एक औषधि बता रहे हैं जाके इस महिला को बता दो. इसके बाद हमने पूज्यश्री से पुछा कि क्या इस औषधि के बारे में सबको बताना चाहिए तो बाबा ने कहा ज़रूर बताओ. इसलिए आज आपके सन्मुख उस औषधि के बारे में लिख रहा हूँ और भविष्य में औघड़ी चिकित्सा प्रसंग में और औषधियों के बारे में लिखता रहूँगा.

                                                                      मानसिक रूप से विकलांग बच्चो के लिए यह औषधि ५ वर्ष तक सर्वाधिक प्रभाव देती है और १० वर्ष कि आयु तक यह दी जा सकती है. 
पीपल के कोमल पत्ते जो थोड़ी लालिमा लिए होते हैं,  कुछ पत्ते लेकर उसे पुवाल याने पैरे के ऊपर रखकर निचे से अग्नि जलाए, पत्ते भस्म हो जायेंगे, उन्हें बहुत धीरे से उठा ले, इसको  उठाने में बहुत सावधानी  रखनी   पड़ती है, नहीं तो वो बिखर जाते हैं. अब इसी भस्म शहद के साथ सुबह शाम देने से मानसिक विकलांगता समाप्त  हो जाती है. 

                                                       इसके साथ ही बाबा ने कहा कि गुलर वृक्ष के फल कि सब्जी खिलाने से भी मानसिक परिपक्वता आती है. काली तुलसी का रस सुबह और शाम पिलाने से लाभ बढ़  जाता है.

अघोरान्ना परो मन्त्रः नास्ति तत्वं गुरो परम

Monday, March 7, 2011

अवधूत समूह रत्न राम लीला प्रसंग

प्रिय मित्रों पूज्य बाबाजी से जुड़े भक्तो और शिष्यों के पास ऐसे बहुमूल्य संस्मरण है, जिन्हें सुनकर अघोर संत के जीवन की झलक मिलती है. कैसे बातो बातो में कृपा बरसती है, जिन्हें साधारण जन चमत्कार का भी नाम देते हैं. पूज्य बाबा के आस पास भी बहुत से चमत्कार होते रहते हैं. वस्तुतः यह सब उनकी कृपा है. लीला प्रसंग में हम ऐसे ही संस्मरणों का संकलन करने जा रहे हैं.यह वर्ष १९९९ की बात है, उन दिनों पूज्य बाबाजी की लीला का अलग ही आनंद हुआ करता था. मैं और मेरे गुरु भाई देवेश पंडा बाबाजी के साथ उनके एक भक्त श्री अनुराग अग्रवाल की महावीर गौशाला, रायपुर स्थित दुकान कैट कार पहुंचे. इसी स्थान पर बाबाजी के अनन्य भक्त श्री बृजमोहन अग्रवाल कैबिनेट मंत्री, छत्तीसगढ़ इनके पिताश्री ने पूज्य बाबा का प्रथम दर्शन प्राप्त किया था. अग्रवालजी से जुड़े प्रसंगों पर कभी और चर्चा करेंगे. आज की लीला के मुख्य पात्र श्री लल्लू महेश्वरी है, जो अनुरागजी की दुकान में उपस्थित थे. लल्लूजी आगरा के निवासी थे और जनरेटर की फैक्ट्री के मालिक थे. इसके साथ ही लल्लूजी ज्योतिष और तंत्र के ज्ञाता भी थे. ऐसे ही पूज्य बाबाजी के साथ आध्यात्मिक और पारिवारिक चर्चा चल रही थी. अचानक लल्लूजी ने कहा बाबाजी कुछ चमत्कार भी करते हैं क्या आप, पूज्य बाबाजी ने लल्लूजी की बांह पर हाथ फेर कर कहा " लल्लूजी हो गया चमत्कार". अचानक हम सब देखते हैं की लल्लूजी जो दुकान के बाहरी हिस्से में बैठे होते हैं, उठकर अन्दर जाते हैं, और बाबाजी के चरणों में गिर पड़ते हैं. हमारे समझ में कुछ नहीं आता है. मैं और मेरे गुरु भाई के मन में खलबली मची होती है, हम दोनों गुरुभाई लल्लूजी को थोड़ी देर बाद अलग ले जाकर पूछते हैं की अचानक आपको क्या हुआ जो चरण स्पर्श करने लगे. जो लल्लूजी ने कहा वो अक्षरसः प्रस्तुत है. " कमलजी मैं अपने व्यापार के सिलसिले में हमेशा यात्रा करता रहा हूँ, आज से बीस वर्ष पहले एक ट्रेन से कहीं जा रहा था, सामने एक जटा जुट धारी साधू बैठा था. मैंने मौज में कह दिया " बाबा ऐसे देखा देखि में ही दाढ़ी बाल बढ़ा लिए माला पहन ली या कुछ चमत्कार भी करते हो. साधू ने मेरी बांह पर हाथ फेरा और कहा," जा बच्चा हो गया चमत्कार". उसके बाद से मेरी बांह से गांजे की महक आना शुरू हो गयी. मैं और मेरा परिवार इस बात से बहुत दुखी रहने लगा, क्योंकि जो मेरेपास बैठता उसे वो महक आती. बहुत सालो से मैं हर जगहगया, मंदिर मजार, साधू सन्यासी सबके पास गया पर मेरी समस्या का हल कोई नहीं कर पाया, और आज बीस साल बाद आपके गुरुदेव ने बिलकुल उसी तरह मेरी बांह पर हाथ फेरा और बिलकुल वही वाक्य कहा और मेरी बांहों से वो महक आना बंद हो गयी. "उसके बाद पूज्य बाबाजी ने लल्लूजी से कहा चलो घूम कर आते हैं, मैं, देवेश और लल्लूजी बाबाजी के साथ मारुती वैन में घुमने निकले, गाडी बाबाजी स्वयं चला रहे थे. बातो बातो में बाबा ने कहा लल्लूजी आपके बम्बई वाले घर चलते हैं. लल्लूजी भी आश्चर्य से भर उठे कि बाबा को उस घर के बारे में कैसे पता है. गाडी चलाते हुए ही बाबाजी ने लल्लूजी से कहा कि यह आपके घर का मुख्य द्वार है, यह कमरा और यह नाटे कद का व्यक्ति कौन है....इसी तरह से बाबा बोलते रहे मानो वो उस वक्त लल्लूजी के मुंबई वाले घर में मौजूद हैं. हम सब अवाक रह गए. यह पूज्य बाबा कि लीला का एक अंग था, एक सिद्ध अघोर संत के लिए यह सारी बातें खेल कि तरह है, जिन्हें हम चमत्कार कहते हैं.
अघोरान्ना परो मन्त्रः नास्ति तत्वं गुरो परम
कमल नारायण शर्मा
रायपुर


Friday, March 4, 2011

साधु सेवा अभेद आश्रम - अद्भुत अघोर पीठ.

पूज्य अवधूत बाबा समूह रत्न रामजी ज्यादातर महुआ टोली, कुनकुरी आश्रम में रहते हैं, इसलिए लोग उन्हें महुआ टोली वाले औघड़ बाबा के नाम से जानते हैं. छत्तीसगढ़ में पूज्य बाबा शमशानी औघड़ के रूप में विख्यात हैं. छत्तीसगढ़ के पूर्वी दक्षिण भाग में स्थित जशपुर जिला औघड़ अघोरेश्वरों की साधना स्थली रहा है. जशपुर जिले में पूज्य बाबा ने कुनकुरी महुआ टोली में एक आश्रम स्थापित किया, परन्तु बाबा ने एक और स्थान पर आश्रम बनाया जो बहुत लोगो को ज्ञात नहीं है. झारखंड राज्य के सिमडेगा जिले में कुरडेग नामक ग्राम में बाबा ने एक आश्रम का निर्माण किया है. यह आश्रम गुप्त रूप से एक सिद्ध अघोर पीठ है. इस स्थान को बाबा की साधना स्थली होने का गौरव प्राप्त है. आश्रम स्थापित होने के पूर्व यह स्थान वीरान और उजाड़ रहता था. आश्रम की भूमि के पास चार शमशान थे. शाम होने के बाद उस मार्ग से जाने का साहस ग्रामीण लोग नहीं कर पाते थे. क्कुह ग्रामीणों ने वहां अशरीरी लोगो के दर्शन किये, कुछ लोगो को आग की तरह जलता हुआ एक गोला नज़र आता था. जो रात में उस जगह रुक जाता तो सुबह खुद को उस स्थान से काफी दूर पाता था. आश्रम भूमि पर स्थित एक छोटा सा नीम का पेड़ था, जिसपर से आग के गोले को उतरते और पास ही स्थित पीपल के पेड़ पर चढ़ते बहुत से लोगो ने देखा था. नीम के पेड़ पर एक अहिराज साँप का भी वास था, जिसके बारे में प्रचलित है, की वो जब नीचे आता था, तो एक मणि उसके मुख से बाहर आती थी और उसके प्रकाश में वो अपना आहार तलाशता था. ऐसे ही दुरह और दुर्गम स्थान पर बाबा ने अपना आश्रम बनाना स्वीकार किया.
                                                                     आश्रम की सहमती देने के बाद बाबाजी ने वहां अपनी धूनी रमाई. बड़ी कठोर  और विकट साधना का काल था, लोग अब भी उस ठान से इतना डरते थे की बाबा को भोजन देने भी बहुत कम लोग आते, बाबा को इस साधना काल के दौरान कितने दिन भूखे  रहना पड़ता था. पूज्य बाबा ने उस स्थान पर एक देवी की स्थापना की, किस देवी की यह कोई नहीं जानता. परन्तु यह ज़रूर लोगो का कहना है, वो देवी बहुत जल्दी प्रसन्न और बहुत जल्दी रुष्ट होने वाली हैं. स्थानीय ग्रामवासी और जानकार साधक यदा कदा इस स्थल पर आकर अपनी मनोकामना पूर्ती हेतु पूजन संपन्न करते हैं.    एक अघोर सिद्ध महात्मा ने कहा की यह देवी तारापीठ में स्थित माँ तारा की बहन हैं, और उनसे ज्यादा उग्र हैं. एक बात और इस स्थान की प्रसिद्ध  है,  उस स्थान पर अगर कोई मदिरा पान करता है, तो वो कपडे उतार कर पागलो की तरह ग्राम में नाचता घूमता है. इसलिए कोई भी ग्रामवासी मदिरापान करके इस स्थल पर नहीं आता है. पूज्य बाबा स्वयं लोगो को मदिरा पान से दूर रहने की सलाह देते हैं.

                                                                        पूज्य बाबा की साधना स्थली होने से  यह स्थान सिद्ध अघोर पीठ भी है. गुप्त रूप से बहुत से अघोर साधको का यहाँ आवागम होता रहता है, जो चुपचाप आते हैं अपना अभीष्ट  प्राप्त करते हैं और चले जाते हैं. बहुत से अघोर साधू और अन्य   सम्प्रदाय के साधू भी इस स्थल पर यदा कदा आते रहते हैं. इस स्थल को पूज्य बाबा ने नाम दिया साधू सेवा अभेद आश्रम, पूज्य बाबा कहते हैं साधू का अर्थ हुआ सीधा, सज्जन और सरल. बाबा कहते हैं जो व्यक्ति कपट से रहित छल से रहित सरलता की मूर्ती हो उसका इस आश्रम में स्वागत और सेवा की जाए. साथ ही अपने गुरु परम पूज्य अघोरेश्वर भगवान् रामजी के निर्वाण दिवस पर हर वर्ष बाबा एक भंडारे का आयोजन करते हैं. इसी आश्रम से कुष्ठ रोगियों की सेवा की जाती है तथा औषधियों  का मुफ्त वितरण भी किया जाता है.

                                                                   कुरडेग आश्रम सेवा और साधना की स्थली  के रूप में विकसित किया गया है. पूज्य बाबा के कठोर तप और साधना  के बाद यह स्थान अब साधारण जन हेतु सुलभ बन गया. परन्तु इस स्थान की खासियत है, की यहाँ वही व्यक्ति पहुँच सकता है, जो सीधा सरल हो, जो निष्कपट हो, जो साधक हो. बुरे विचारों के साथ इस स्थान पर पहुंचना ही असंभव है. बहुत कम साधको और भक्तो को यह सौभाग्य मिला है, की वो पूज्य  बाबा की इस तपोस्थली का दर्शन कर सके और यहाँ विराजमान सिद्ध देवी का दर्शन पूजन कर अपना अभीष्ट प्राप्त कर सके. श्रद्धा और भक्ति के साथ जो साधारण जन यहाँ आते है वो अपनी मनोकामना पूरी करके लौटते हैं. जो साधक श्रद्धा से निष्कपट होकर अपनी इष्ट साधना हेतु यहाँ पहुँचते हैं, वो अपना संकल्प पूरा  
अघोरान्ना परो मन्त्रः नास्ति तत्वं गुरो परम.

Wednesday, March 2, 2011

अवधूत बाबा समूह रत्न रामजी की विशिष्ट और दुर्लभ दीक्षा .

अघोर पथ के पथिको को यह भेद ज्ञात है कि, आध्यात्म जगत के हर पथ हर सम्प्रदाय हर धर्म में अवस्था और पद का बड़ा महत्व होता है. साधक अथवा संत अपनी अवस्था को खुद प्रगट करते हैं, कुछ जगह दुसरे संतो ने जागृत लोगो ने दुसरे कि अवस्था की घोषणा की है. गौतम बुद्ध ने अपने बुद्धत्व की घोषणा खुद की, तब लोगो  को   उनकी अवस्था का  पता चला.  ज्ञान मार्ग   के पथिको को मालूम है कि, पहला लक्ष्य या अवस्था शिवत्व है और उसके बाद बुद्धत्व. इसी प्रकार अघोर पथ के साधक जानते हैं कि अवधूत मत में भी चार अवस्थाएं हैं,  पहली अवस्था अघोरी दूसरी औघड़ तीसरी अवधूत और चतुर्थ अघोरेश्वर. इस अवस्था का पता साधक संत स्वयं दे देते हैं. अघोर पथ के साधक जिस अवस्था में होते हैं,  उस   पद या अवस्था के उपनाम का उपयोग करते हैं. साधक किस अवस्था पर स्थित है इसके कुछ लक्षण और कुछ क्रियाये भी हैं, जिनसे उनकी अवस्था को जाना जा सकता है, परन्तु गोप्य होने के कारण इसे यहाँ प्रगट करना उचित नहीं है.
                                                       परम पूज्य अघोरेश्वर भगवान रामजी इस सदी के महान अघोर संत हुए हैं.  पूज्य अघोरेश्वर अपने आरभ के दिनों में अपने नाम के आगे औघड़ पद का उपयोग करते थे, पूज्य  महाप्रभु के जीवन चरित पर एक किताब भी प्रकाशित हुई थी जिसका शीर्षक
" औघड़ भगवान् राम ग्रन्थ" था. कुछ काल के बाद पूज्य महाप्रभु ने अपने नाम के आगे अवधूत पद का उपयोग करना आरम्भ किया. यह पद ही अघोर साधक या संत की अवस्था को दिखलाता है. दशनामी परंपरा के साधको में भी यह प्रचलित है. अंतर सिर्फ इतना है की अघोर संत अपने नाम के आगे पद लगाते हैं और दशनामी अपने नाम के बाद. शंकराचार्य द्वारा स्थापित दशनामी संन्यास परम्परा में दस पद या उपनाम का उपयोग होता है.

तीर्थाश्रम वनारण्य गिरि पर्वत सागरा:।
सरस्वती भारती च पुरी नामानि वै दश:॥

तीर्थ एवं आश्रम नागा संन्यासियों को शारदा (द्वारिका) मठ से संबन्धित किया। वन एवं अरण्यों को गोवर्धन (जगन्नाथ पुरी) मठ से जोड़ा जाता गया। गिरी, पर्वत तथा सागर नागा संन्यासियों के ज्योर्तिमठ से संबन्धित किया गया है। सरस्वती, भारती एवं पुरी नागा संन्यासियों को शारदा मठ से संबन्धित किया गया है।
            
                                            परम पूज्य अघोरेश्वर भगवान् रामजी ने अपनी शिष्य परम्परा में सभी साधको को औघड़ अथवा अवधूत अवस्था की स्थिति में ही दीक्षित किया. अपने नाम के आगे अघोरेश्वर का उपनाम उपयोग करने के बाद पूज्य महाप्रभुजी ने अपने सिर्फ एक शिष्य को मुडिया साधू के रूप में दीक्षित किया और वो शिष्य थे पूज्य अवधूत बाबा समूह रत्न राम जी, जिन्हें सब महुआ टोली वाले औघड़ बाबा के नाम से जानते हैं. यह आश्चर्यजनक सत्य है की अघोरेश्वर की अवस्था में पूज्य महाप्रभु ने अपने एक ही शिष्य को अघोर संस्कार में दीक्षित किया और अपना अंतिम उत्तराधिकारी भी घोषित किया. इस सत्य के प्रकाश में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि, पूज्य अवधूत बाबा समूह रत्न रामजी अकेले ऐसे साधू हैं जिन्हें अघोरेश्वर का बुद्ध का साधू शिष्य होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. संन्यास दीक्षा संस्कार मूलतः रूपांतरण कि प्रक्रिया का सर्वोच्च सोपान है जिसमे गुरु शिष्य को उसी वक्त अपनी शक्तियां और सूक्तियां सौपते हैं. अघोरेश्वर पद पर विराजमान संत की  शक्तियों की कल्पना भी हमारे सोच के दायरे से बहुत ऊपर हैं.

                                                                    पूज्य अवधूत सम्मोह रत्न रामजी अकेले ऐसे मुडिया साधु हैं जिनका दीक्षा संस्कार, हवन पूजन, नामकरण और दीक्षा देने का अधिकार एक ही दिन प्राप्त हुआ. पूज्य बाबा का दीक्षा दिवस भी अतुलनीय है, पूज्य बाबा को पूज्य अघोरेश्वर ने बुद्ध पूर्णिमा के दिन दीक्षा दी थी. बुद्ध पूर्णिमा अथवा पूर्णिमा का बहुत महत्त्व है आध्यात्म जगत में. गौतम बुद्ध पूर्णिमा के दिन जन्मे पूर्णिमा के दिन बुद्धत्व को उपलब्ध हुए और पूर्णिमा के दिन ही निर्वाण को प्राप्त हुए. अगर इतिहास पर नज़र डाले तो पूर्णिमा के दिन ही सर्वाधिक लोगो को बुद्धत्व उपलब्ध हुआ. पूर्णिमा के चन्द्र से समुद्र में भी ज्वार भाटा उठने लगता है, पूर्णिमा के दिन मन शरीर भी सर्वाधिक प्रभावित होते हैं. पूज्य अघोरेश्वर इस सदी के जीवित बुद्ध थे, और पूज्य बाबा को सन्यास में दीक्षित करने का दिन अगर उन्होंने बुद्ध पूर्णिमा चुना तो यह एक सुखद आश्चर्य की बात है.

                                                                पूज्य अघोरेश्वर ने अपने सभी उत्तराधिकारी साधु शिष्यों का नामकरण दीक्षा के काफी समय बाद किया और दीक्षा देने का अधिकार तो बहुत बाद में प्रदान किया. पूज्य बाबा अकेले शिष्य हैं जिन्हें दीक्षा संस्कार, नामकरण और दीक्षा देने का अधिकार एक ही दिन पूज्य महाप्रभु ने प्रदान कर दिया. पूज्य बाबा का दीक्षा संस्कार सर्वाधिक समय में संपन्न हुआ, दोपहर तीन बजे आरम्भ होकर रात नौ बजे संस्कार संपन्न हुआ. इन्ही सब तथ्यों के प्रकाश में यह कहना उचित होगा की पूज्य बाबा समूह रत्न रामजी की दीक्षा अपने आप में  दुर्लभ थी.

" अघोरान्ना परो मंत्रः नास्ति तत्वं गुरो परम "