Friday, March 4, 2011

साधु सेवा अभेद आश्रम - अद्भुत अघोर पीठ.

पूज्य अवधूत बाबा समूह रत्न रामजी ज्यादातर महुआ टोली, कुनकुरी आश्रम में रहते हैं, इसलिए लोग उन्हें महुआ टोली वाले औघड़ बाबा के नाम से जानते हैं. छत्तीसगढ़ में पूज्य बाबा शमशानी औघड़ के रूप में विख्यात हैं. छत्तीसगढ़ के पूर्वी दक्षिण भाग में स्थित जशपुर जिला औघड़ अघोरेश्वरों की साधना स्थली रहा है. जशपुर जिले में पूज्य बाबा ने कुनकुरी महुआ टोली में एक आश्रम स्थापित किया, परन्तु बाबा ने एक और स्थान पर आश्रम बनाया जो बहुत लोगो को ज्ञात नहीं है. झारखंड राज्य के सिमडेगा जिले में कुरडेग नामक ग्राम में बाबा ने एक आश्रम का निर्माण किया है. यह आश्रम गुप्त रूप से एक सिद्ध अघोर पीठ है. इस स्थान को बाबा की साधना स्थली होने का गौरव प्राप्त है. आश्रम स्थापित होने के पूर्व यह स्थान वीरान और उजाड़ रहता था. आश्रम की भूमि के पास चार शमशान थे. शाम होने के बाद उस मार्ग से जाने का साहस ग्रामीण लोग नहीं कर पाते थे. क्कुह ग्रामीणों ने वहां अशरीरी लोगो के दर्शन किये, कुछ लोगो को आग की तरह जलता हुआ एक गोला नज़र आता था. जो रात में उस जगह रुक जाता तो सुबह खुद को उस स्थान से काफी दूर पाता था. आश्रम भूमि पर स्थित एक छोटा सा नीम का पेड़ था, जिसपर से आग के गोले को उतरते और पास ही स्थित पीपल के पेड़ पर चढ़ते बहुत से लोगो ने देखा था. नीम के पेड़ पर एक अहिराज साँप का भी वास था, जिसके बारे में प्रचलित है, की वो जब नीचे आता था, तो एक मणि उसके मुख से बाहर आती थी और उसके प्रकाश में वो अपना आहार तलाशता था. ऐसे ही दुरह और दुर्गम स्थान पर बाबा ने अपना आश्रम बनाना स्वीकार किया.
                                                                     आश्रम की सहमती देने के बाद बाबाजी ने वहां अपनी धूनी रमाई. बड़ी कठोर  और विकट साधना का काल था, लोग अब भी उस ठान से इतना डरते थे की बाबा को भोजन देने भी बहुत कम लोग आते, बाबा को इस साधना काल के दौरान कितने दिन भूखे  रहना पड़ता था. पूज्य बाबा ने उस स्थान पर एक देवी की स्थापना की, किस देवी की यह कोई नहीं जानता. परन्तु यह ज़रूर लोगो का कहना है, वो देवी बहुत जल्दी प्रसन्न और बहुत जल्दी रुष्ट होने वाली हैं. स्थानीय ग्रामवासी और जानकार साधक यदा कदा इस स्थल पर आकर अपनी मनोकामना पूर्ती हेतु पूजन संपन्न करते हैं.    एक अघोर सिद्ध महात्मा ने कहा की यह देवी तारापीठ में स्थित माँ तारा की बहन हैं, और उनसे ज्यादा उग्र हैं. एक बात और इस स्थान की प्रसिद्ध  है,  उस स्थान पर अगर कोई मदिरा पान करता है, तो वो कपडे उतार कर पागलो की तरह ग्राम में नाचता घूमता है. इसलिए कोई भी ग्रामवासी मदिरापान करके इस स्थल पर नहीं आता है. पूज्य बाबा स्वयं लोगो को मदिरा पान से दूर रहने की सलाह देते हैं.

                                                                        पूज्य बाबा की साधना स्थली होने से  यह स्थान सिद्ध अघोर पीठ भी है. गुप्त रूप से बहुत से अघोर साधको का यहाँ आवागम होता रहता है, जो चुपचाप आते हैं अपना अभीष्ट  प्राप्त करते हैं और चले जाते हैं. बहुत से अघोर साधू और अन्य   सम्प्रदाय के साधू भी इस स्थल पर यदा कदा आते रहते हैं. इस स्थल को पूज्य बाबा ने नाम दिया साधू सेवा अभेद आश्रम, पूज्य बाबा कहते हैं साधू का अर्थ हुआ सीधा, सज्जन और सरल. बाबा कहते हैं जो व्यक्ति कपट से रहित छल से रहित सरलता की मूर्ती हो उसका इस आश्रम में स्वागत और सेवा की जाए. साथ ही अपने गुरु परम पूज्य अघोरेश्वर भगवान् रामजी के निर्वाण दिवस पर हर वर्ष बाबा एक भंडारे का आयोजन करते हैं. इसी आश्रम से कुष्ठ रोगियों की सेवा की जाती है तथा औषधियों  का मुफ्त वितरण भी किया जाता है.

                                                                   कुरडेग आश्रम सेवा और साधना की स्थली  के रूप में विकसित किया गया है. पूज्य बाबा के कठोर तप और साधना  के बाद यह स्थान अब साधारण जन हेतु सुलभ बन गया. परन्तु इस स्थान की खासियत है, की यहाँ वही व्यक्ति पहुँच सकता है, जो सीधा सरल हो, जो निष्कपट हो, जो साधक हो. बुरे विचारों के साथ इस स्थान पर पहुंचना ही असंभव है. बहुत कम साधको और भक्तो को यह सौभाग्य मिला है, की वो पूज्य  बाबा की इस तपोस्थली का दर्शन कर सके और यहाँ विराजमान सिद्ध देवी का दर्शन पूजन कर अपना अभीष्ट प्राप्त कर सके. श्रद्धा और भक्ति के साथ जो साधारण जन यहाँ आते है वो अपनी मनोकामना पूरी करके लौटते हैं. जो साधक श्रद्धा से निष्कपट होकर अपनी इष्ट साधना हेतु यहाँ पहुँचते हैं, वो अपना संकल्प पूरा  
अघोरान्ना परो मन्त्रः नास्ति तत्वं गुरो परम.

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